जागिये व्रजराजकुंवर कमल कोष फूले || कुमुदिनी जिय सकुच रही भृंगलता झूले || १ ||
तमचर खग करत रोर बोलत वनराई || राभंत गौ मधुर नाद वछ चपलताई || २ ||
रवि प्रकाश विधु मलीन गावत व्रजनारी || सूर श्रीगोपाल उठे परम मंगलकारी || ३ ||