प्रात समे सुमरन कर श्रीवल्लभ
श्रीविट्ठलनाथ चरन रज लीजे ||
घुम घटा आई चहुँ दिस
तें ता मधि बीजरी जु नाम लहीजे || १ ||
नाम प्रताप उधारयों सब जग
निरमल होय रस पीजे ||
‘रसिक’ निज दास जान
के सदा निकट अपनो कर लीजे || २ ||
प्रात समे सुमरन कर श्रीवल्लभ
श्रीविट्ठलनाथ चरन रज लीजे ||
घुम घटा आई चहुँ दिस
तें ता मधि बीजरी जु नाम लहीजे || १ ||
नाम प्रताप उधारयों सब जग
निरमल होय रस पीजे ||
‘रसिक’ निज दास जान
के सदा निकट अपनो कर लीजे || २ ||