आसरो एक दृढ श्रीवल्लभाधीशकों ||
मानसी रीतकी मुख्यसेवाव्यसन
लोक्कवैदिक त्याग शरण गोपीशको || १ ||
दीनता भावउद्बोध गुणगानसों घोष
त्रियभावना उभय जाने ||
कृष्णनाम स्फुरे पल न आज्ञा टरें
कृति वचन विश्वास मानचित्त आने || २ ||
भगवदीय जान सतसंगको
अनुसरे नादेखें दोष और सत्य भाखें ||
पुष्टिपथ मरम दस धरम यह विधि
कहे सदाचित्तमें श्रीद्वारकेश राखें || ३ ||